मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यय अपने विषयों में वे अन्तर्मुहूर्त (वह भी कम समय का) तक ही बने रहते हैं। फिर ज्ञानोपयोग बदल जाता है या दर्शनोपयोग में चला जाता है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड गाथा– 674)
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4 Responses
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने ज्ञानों के काल की परिभाषा बताई गई है वह पूर्ण सत्य है।
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने ज्ञानों के काल की परिभाषा बताई गई है वह पूर्ण सत्य है।
‘ज्ञानोपयोग’ se ‘दर्शनोपयोग’ me kaise chale jaata hai ?
नये विषय पर जाने से शुरूआत दर्शन से ही होगी न ?
Okay.