गन्ने में मिठास तो होती है पर उस मिठास को निकालने के लिये उसे पिलना पडता है ।
श्रावकों को देव, शास्त्र, गुरु की पूजा, आराधनादि; श्रमणों का केशलोंच आदि तप, जीवन में से मिठास निकालने के लिए ।
वरना गन्ना सूखकर अपनी मिठास खो देगा ।
मुनि श्री अविचलसागर जी
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तप का तात्पर्य इच्छाओं का निरोध करना होता है, इससे द्वारा कर्मों की निर्जरा होती है,यह दो प्रकार के होते हैं ब़ाम्ह और अभ्यन्तर तप। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि गन्ने में मिठास होती है लेकिन उसे पिलना पड़ता है। अतः श्रावकों को देव शास्त्र गुरु की पूजा आदि और श्रमणों को केश लोंच आदि तप करने से जीवन में मिठास निकालने के लिए आवश्यक है, वर्ना गन्ना सूखकर मिठास खो देता है। इसी प्रकार अगर तप नहीं करते हैं तो जीवन में मिठास कभी नहीं आ सकती है ।
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तप का तात्पर्य इच्छाओं का निरोध करना होता है, इससे द्वारा कर्मों की निर्जरा होती है,यह दो प्रकार के होते हैं ब़ाम्ह और अभ्यन्तर तप। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि गन्ने में मिठास होती है लेकिन उसे पिलना पड़ता है। अतः श्रावकों को देव शास्त्र गुरु की पूजा आदि और श्रमणों को केश लोंच आदि तप करने से जीवन में मिठास निकालने के लिए आवश्यक है, वर्ना गन्ना सूखकर मिठास खो देता है। इसी प्रकार अगर तप नहीं करते हैं तो जीवन में मिठास कभी नहीं आ सकती है ।