त्रैकालिक उपयोग के लिये त्याग/तपस्या की आवश्यकता होती है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
Share this on...
4 Responses
1 सचेतन और अचेतन समस्त परिग़ह की निवृती को त्याग कहते हैं।
2 परस्पर प्रीति के लिए अपनी वस्तु को देना त्याग है।
संयमी जनों के योग्य ज्ञान आदि का दान करना भी कहलाता है।
यह कथन सत्य है कि त्रैकालिक उपयोग के लिए त्याग और तपस्या की आवश्यकता होती है।
अतः जीवन में अचेतन का त्याग और उसके बाद चेतन का त्याग को उत्तम त्याग कहलाता है।
4 Responses
1 सचेतन और अचेतन समस्त परिग़ह की निवृती को त्याग कहते हैं।
2 परस्पर प्रीति के लिए अपनी वस्तु को देना त्याग है।
संयमी जनों के योग्य ज्ञान आदि का दान करना भी कहलाता है।
यह कथन सत्य है कि त्रैकालिक उपयोग के लिए त्याग और तपस्या की आवश्यकता होती है।
अतः जीवन में अचेतन का त्याग और उसके बाद चेतन का त्याग को उत्तम त्याग कहलाता है।
“त्रैकालिक” ka kya meaning hai,in the context of above post?
त्याग/तपस्या से…
1) भूत के पापों का क्षय
2) वर्तमान का जीवन संवरता है
3) भविष्य में सुगति/मोक्ष
Okay.