दर्शन
अंतरंग-दर्शन के लिए चिंतन (चेतना है तो चिंतन होना भी चाहिए) ।
बाह्य-दर्शन के लिए उपनयन (“उप”-पास से, पर साफ दृष्टि होनी चाहिए तभी सही दर्शन होंगे) ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
अंतरंग-दर्शन के लिए चिंतन (चेतना है तो चिंतन होना भी चाहिए) ।
बाह्य-दर्शन के लिए उपनयन (“उप”-पास से, पर साफ दृष्टि होनी चाहिए तभी सही दर्शन होंगे) ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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दर्शन दो प्रकार से होते हैं, अंतरंग एवं ब़ाह्य।सामन्य दर्शन अवलोकन को कहते हैं, जबकि अंतरंग के लिए भगवान एवं वीतरागी मुनि के लिए कहा गया है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि अंतरंग दर्शन के लिए चेतना में चिंतन होना आवश्यक है। बाह्य दर्शन के लिए साफ द्वष्टि होना चाहिए ताकि सही दर्शन हो सकते हैं।