दर्शन
“दर्शन” शब्द के बहुत अर्थ होते हैं…
देखना, श्रद्धा, मत(जैसे जैन दर्शन)।
कहा गया है “चारित्र (भावलिंग) से भ्रष्ट तो सिद्धि को प्राप्त कर सकता है, परंतु दर्शन (द्रव्यलिंग) से भ्रष्ट के लिए सिद्धि प्राप्त करना असंभव है
मुनि श्री सौम्य सागर जी (जिज्ञासा समाधान-15 फ़रवरी)
आचार्य कुन्दकुन्द ‘दंसणपाहुड’ में ‘दर्शन’ को ‘जिनमुद्रा’ के अर्थ में प्रयुक्त कर उसे एक विलक्षण आयाम देते हैं। जिनमुद्रा (द्रव्यलिंग) को देखकर मोक्षमार्ग से साक्षात्कार हो जाता है, अतएव वह भी दर्शन है।
कमलकांत