दान
आचार्य श्री विद्यासागर जी के पास एक संभ्रांत व्यक्ति आये।
बोले –> मेरे पास अपार धन है पर दान देने के भाव नहीं होते।
आचार्य श्री –> भाव पूजा/ आहार दान करो, पर best सामग्री की कल्पना करके।
वह भी नहीं कर पा रहा।
लगता है दुर्गति में जाने की तैयारी है। अब तो द्रव्य (धनादि) दान से ही पापोदय समाप्त होगा।
इस झटके का फल हुआ कि धीरे-धीरे उन्होंने अपना सारा धन दान कर दिया और समाधिपूर्वक अंत को प्राप्त किया।
मुनि श्री विनम्रसागर जी
4 Responses
मुनि श्री विनम़सागर महाराज जी ने दान कर उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए दान करना परम आवश्यक है।
‘आहार दान’, कल्पना se ho sakta hai kya? Ise clarify karenge, please ?
हो सकता है।
कंजूस के तथा कल्पना में भी।
Okay.