दुनिया

आचार्य श्री विद्यासागर जी के संघ का विहार चल रहा था, बाहर कहीं एक गाना चल रहा था, “दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समायी, तूने काहे को दुनिया बनायी”,
आचार्य श्री विद्यासागर जी ने कहा कि ऐसे कहो “दुनिया बसाने वाले क्या तेरे मन में समायी, तूने काहे को दुनिया बसायी” ।

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12 Responses

  1. Duniya se bahar jaane ka raasta Moksha hai.
    Par Moksha mein jaakar aatma ka kya hota hai?
    moksha mein jaakar aatma ka kya uddeshya reh jaat hai?

    1. गुरु श्री क्षमासागर जी एक कथा सुनाते हैं –
      पुत्र पढ़ाई खत्म करके घर आया तो पिता ने पूछा – क्या तुमने वह पढ़ा जिसके बाद कुछ भी पढ़ने की ज़रुरत नहीं रहती ?
      मोक्ष वही स्थिति है – जिसे पाकर फिर कुछ भी पाने की इच्छा नहीं रहती !
      कल्पना करें उस Extreme सुख और आनंद के क्षणों की जो हमारे जीवन में कभी आये होंगे ।
      बस, इन क्षणों को अनंत गुणा और अनंत समय के लिये Permanent कर दें – यह मोक्ष है,
      जहाँ जीव हमेशा हमेशा के लिये अनंत सुख में, अनंत दु:खों से दूर, स्थिर हो जाता है

  2. Jai jinendra guruji,
    Sab parva mein astanika parva ka mahatwa jyada hai kyon ?
    kumli athai ki widhi batane ki kripa kare .

    1. कृपया ‘गुरू जी’ से संबोधन ना करें, मैं ज्ञान की दुनियाँ में बहुत छोटा हूँ ।
      अष्टांहिका पर्व सबसे महत्वपूर्ण निम्न कारणों की वजह से है ।
      1. यह अनादि निधन पर्व है जो वर्ष में 3 बार आठ-आठ दिन के लिये मनाया जाता है ।
      2. पूरे अढ़ाई द्वीप, नंदीश्वर द्वीप तथा तीनों लोकों में असंख्यात जीव इसे एक साथ मनाते हैं ।
      3. यही एक पर्व है जो देवताओं के द्वारा भी मनाया जाता है ।

      कुमली अठाई के बारे में 3 विद्वानों से भी पता किया पर यह अपनी परंपरा में मनाया नहीं जाता है ।
      आपने यह नाम कहां से सुना ?

  3. ‘Chalte chake dakh kar diya kabira roa
    dui patin ke bech mai sabut bacha na koa.’
    Ye duniya ek chake ke tarah hai, jisme pratek manush pista ja raha hai lekean jo manush dharm rupi khel ka sahara le leta hai bo is sansar rupi chake mao pisne se bach jata hai ise liye hume hamesa dharm karyo me lage rahana chahiye.
    Jai jinendr
    amit jain “ranu”nandishur kalonay tikamgarh

    1. मध्यम वर्गीय मनुष्य दूसरे के सुख के लिये अपना सुख छोड़ देता है पर,
      उत्कृष्ट मनुष्य खुद भी सुखी रहता है और उसके निमित्त से दूसरे भी सुखी हो जाते हैं ।

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