द्रव्य / तत्त्व
संसार द्रव्य व तत्त्वों का बगीचा है, यह निंदनीय नहीं, संसारी निंदनीय हैं।
द्रव्य को बस सुरक्षित रखना है, महत्त्व तत्त्व का है।
इसीलिये भगवान ने तत्त्व की चर्चा ज्यादा, द्रव्य की कम की।
आचार्य कुंदकुंद ने छोटे से पंचास्तिकाय को छोड़कर कहीं द्रव्यों का वर्णन नहीं किया;
आचार्य उमास्वामी ने “तत्त्वार्थ श्रद्धानम्” कहा है।
तत्त्व ही सुख है, द्रव्य दु:ख।
मुनि श्री सुधासागर जी
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द़व्य गुण और पर्याय रुप को कहते हैं,यह छह होते हैं। तत्त्व का मतलब जिस वस्तु का जोर भाव है, तत्त्व सात होते हैं। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि संसार द़व्य व तत्वों का बगीचा है,यह निंदनीय नहीं लेकिन संसार निंदनीय है अतः द़व्य को सुरक्षित रखना है महत्व तत्व का है। इसलिए भगवान् ने तत्व की चर्चा अधिक की गई है, द़व्य की कम की गई है। अतः आचार्य कुंदकुंद एवं आचार्य श्री उमास्वामी का कथन सत्य है तत्व ही सुख है जबकि द़व्य दुःख देने वाला है।