धन / पाप / दान
धन तो सबने मिलकर भोगा, समाप्त कर लिया।
बचा क्या ?
धन कमाने में कमाया पाप, यह हमें अकेले ही भोगना होगा।
इसका कुछ अंशों में मार्जन दान से होगा, साथ-साथ पुण्य की कमाई होगी, आसक्त्ति तथा अहंकार कम होगा।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
धन तो सबने मिलकर भोगा, समाप्त कर लिया।
बचा क्या ?
धन कमाने में कमाया पाप, यह हमें अकेले ही भोगना होगा।
इसका कुछ अंशों में मार्जन दान से होगा, साथ-साथ पुण्य की कमाई होगी, आसक्त्ति तथा अहंकार कम होगा।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
One Response
पाप का तात्पर्य जो आत्मा को अशुभ से बचाए, अथवा दूसरों से प्राप्त अशुभ परिणाम होना है। इसमें हिंसा, झूठ, चोरी कुशील और परिग़ह पांच पाप है। दान का तात्पर्य परोपकार की भावना से अपनी वस्तु का अर्पण करना होता है, दान जीवन को पुण्य मय बनाता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि धन कमाने में पाप लगता है, अतः इसको दान में लगाना उपयुक्त है ताकि यह पुण्य की कमाई एवं आशक्ति तथा अहंकार कम होगा। अतः जीवन में दान देना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।