ध्यान कल्पना ही तो है – सिद्ध, अरहंत, आत्मादि की;
कैसा स्वरूप होगा आदि !
ऐसा ध्यान करते-करते एक दिन तद्-रूप भी होने की संभावना बन जाती है।
मुनि श्री सुधासागर जी
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4 Responses
ध्यान का तात्पर्य चित्त की एकाग्रता होना है।यह चार प्रकार के होते हैं।आर्तध्यान,रौद़ध्यान,धर्मध्यान,शुक्लध्यान।धर्म ध्यान एवं शुक्ल ध्यान दोनों मोक्ष प्राप्ति में सहायक होते हैं। उपरोक्त कथन सत्य है कि ध्यान कल्पना ही तो है, लेकिन यह कल्पना ही नहीं है बल्कि सिद्ध, अर्हन्त, आत्मा का स्वरूप को जानना आवश्यक है।जब आत्मा की पहिचान करना आवश्यक है ताकि ध्यान से मोक्ष मार्ग पर चलने में समर्थ होते हैं।
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ध्यान का तात्पर्य चित्त की एकाग्रता होना है।यह चार प्रकार के होते हैं।आर्तध्यान,रौद़ध्यान,धर्मध्यान,शुक्लध्यान।धर्म ध्यान एवं शुक्ल ध्यान दोनों मोक्ष प्राप्ति में सहायक होते हैं। उपरोक्त कथन सत्य है कि ध्यान कल्पना ही तो है, लेकिन यह कल्पना ही नहीं है बल्कि सिद्ध, अर्हन्त, आत्मा का स्वरूप को जानना आवश्यक है।जब आत्मा की पहिचान करना आवश्यक है ताकि ध्यान से मोक्ष मार्ग पर चलने में समर्थ होते हैं।
“तद्-रूप” ka kya meaning hai, please ?
तद्-रूप = उसी रूप (गुरु/अरहंत)
Okay.