निषेध
मन निषेध के प्रति आकर्षित होता है, यदि निषेध दूसरे के द्वारा आरोपित किया जाये तो।
खुद के द्वारा निषेध लगाने पर मन उधर नहीं जाता।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
मन निषेध के प्रति आकर्षित होता है, यदि निषेध दूसरे के द्वारा आरोपित किया जाये तो।
खुद के द्वारा निषेध लगाने पर मन उधर नहीं जाता।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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उपरोक्त कथन सत्य है कि मन निषेध के प्रति आकर्षित होता रहता है, यानी जो कार्य वर्जित है,उस तरफ ध्यान जाता रहता है।
अतः जीवन में अपने मन में निषेध लगाना आवश्यक है, यानी मन में संकल्प लेना चाहिए ताकि निषेध कार्यों से बचा जा सकता है।