पुण्य / पाप
मुठ्ठी बांधे आते हैं (पुण्य लेकर; मनुष्य ही) हाथ पसारे जाते हैं (पुण्य खर्च करके),
फिर भी वैभव को मुठ्ठी में बांधे रखने की कोशिश करते रहते हैं ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
मुठ्ठी बांधे आते हैं (पुण्य लेकर; मनुष्य ही) हाथ पसारे जाते हैं (पुण्य खर्च करके),
फिर भी वैभव को मुठ्ठी में बांधे रखने की कोशिश करते रहते हैं ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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पुण्य- – जो आत्मा को पवित्र करता है या जिससे आत्मा पवित्र होती है उसे कहते हैं अथवा जीव के दया, दान, पूजा आदि शुभ परिणाम को पुण्य कहते हैं। पाप- – जो आत्मा को शुभ से बचाये वह पाप है अथवा दूसरों के प्रति अशुभ परिणाम होना ही पाप है। जैसे हिंसा,झूठ, चोरी,कुशील और परिग़ह, उक्त पांच पाप होते हैं। अतः उक्त कथन सत्य है कि मुठ्ठी बांधे आते हैं यानी मनुष्य ही पुण्य लेकर आता है और जब हाथ पसारे जाते हैं तो अपना पुण्य खर्च करते हैं। लेकिन फिर भी वैभव की मुट्ठी बांध कर रखते हैं तो वह पाप की श्रेणी में आता है, यदि पुण्य का त्याग करता है,वह ही पाप से बचाता है।