प्राण

तीनों बल (मन, वचन, काय) के लिये ज्ञानावरण तथा दर्शनावरण दोनों का क्षयोपशम होना चाहिये क्योंकि ज्ञान बिना दर्शन के होगा नहीं।
वीरांतराय कर्म के क्षयोपशम में अंतराय चाहिए।
बस प्राणों के लिये मोहनीय की जरूरत नहीं
अघातिया में आयु, नाम, गोत्र की जरूरत है पर साता की जरूरत नहीं। यानि असाता के साथ भी जिया जा सकता है।
जबकि प्राणों का घात… मोहनीय, वेदनीय (साता से भी) और गोत्र कर्म से (उदाहरण नीच कहने पर)।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

Share this on...

6 Responses

  1. मुनि महाराज जी ने प़ाण का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! अतः जीवन में प़ाणो का मोहनीय कर्म की आवश्यकता नहीं होती है! जीवन में प़ाणो की चिंता नहीं करना चाहिए बल्कि भगवान एवं गुरुओं पर श्रद्वान करके अपने जीवन का कल्याण करना चाहिए ताकि उसका अगला भव आच्छा हो सकता है!

  2. Kindly clarify meaning of the following sentences:
    1) ‘वीरांतराय कर्म के क्षयोपशम में अंतराय चाहिए।’
    2) ‘अघातिया’ aur ‘प्राण’ ka kya correlation hai ?
    3)Ek taraf to kaha, ‘प्राणों के लिये मोहनीय की जरूरत नहीं’ and then in the second last line bola ki ‘प्राणों का घात… मोहनीय, वेदनीय (साता से भी)’ ?
    4)प्राणों का घात, ‘गोत्र कर्म’ से kaise hota hai aur उदाहरण kahan diya hai ?

    1. यहाँ प्राणों में कर्मों के role की बात हो रही है …
      1) वीरांतराय में अंतराय का
      2) आयु, शरीर व गोत्र का तो संबंध है ही पर साता का कोई संबंध नहीं
      3) 10 प्राणों को पाने में मोहनीय का role नहीं। पर प्राणों के घात में मोहनीय व साता(लौटरी निकलने पर) से भी होता है।
      4) किसी को नीच खानदान का कहने से प्राणों का घात होगा न !

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives
Recent Comments

March 20, 2023

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930