भाग्य / पुरुषार्थ
“समय से पहले और भाग्य से अधिक किसी को कुछ नहीं मिलता”
यह नीति है, सिद्धांत नहीं क्योंकि सिद्धांत तो सब पर लागू होता है, यदि सिद्धांत होता तो कोई मोक्ष नहीं जा पाता !
जबकि नीति अधिकांश पर लागू होती है।
मुनि श्री सुधासागर जी
“समय से पहले और भाग्य से अधिक किसी को कुछ नहीं मिलता”
यह नीति है, सिद्धांत नहीं क्योंकि सिद्धांत तो सब पर लागू होता है, यदि सिद्धांत होता तो कोई मोक्ष नहीं जा पाता !
जबकि नीति अधिकांश पर लागू होती है।
मुनि श्री सुधासागर जी
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पुरुषार्थ का तात्पर्य चेष्टा या प़यत्न करना है। धर्म, अर्थ,काम और मोक्ष यह चार प्रकार के होते हैं। धर्म और मोक्ष पुरुषार्थ द्वारा जीव मोक्ष प्राप्त कर सकता हैं लेकिन धर्म से रहित पुरुषार्थ अर्थ और काम संसार बढ़ाने वाले होते हैं।
भाग्य का मतलब बिना पुरुषार्थ किये भगवान् भरोसे होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि समय से पहले और भाग्य से अधिक कुछ नहीं मिलता है। इसमें वह मोक्ष नहीं जा सकता है। अतः जीवन में बिना पुरुषार्थ कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकता है।
“Purushartha” hamesha “bhagya” par bhaari padta hai. In fact, aaj ka “bhagya”, purv ka “purushartha” hota hai !!