राग अचेतन की परिणति, ये ज्ञानी के भी होता है ।
राग से प्रभावित होना विकार है, यह चेतन की परिणति है, इससे ज्ञानी प्रभावित नहीं होता है ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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राग का मतलब इष्ट पदार्थों में प्रीति या हर्ष रुप परिणाम होना होता है।यह भी दो प्रकार के होते हैं, अप़शस्त राग और प़शस्त राग। अप़शस्त राग भौतिक सुख सुविधा की सामग्री के प्रति राग बढ़ाने वाला होता है जबकि अप़शस्त राग अरहंत, सिद्ध और साधुओं के प्रति भक्ति, दान, पूजा आदि धर्म कार्यों में उत्साह और गुरुओं का अनुकरण करना होता है।
उपरोक्त कथन सत्य है कि राग अचेतन,यह ज्ञानी के भी होता है, अतः राग से प़भावित होना विकार है,यह चेतन की परिणति है लेकिन इसमें ज्ञानी प़भावित नहीं होता है।
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राग का मतलब इष्ट पदार्थों में प्रीति या हर्ष रुप परिणाम होना होता है।यह भी दो प्रकार के होते हैं, अप़शस्त राग और प़शस्त राग। अप़शस्त राग भौतिक सुख सुविधा की सामग्री के प्रति राग बढ़ाने वाला होता है जबकि अप़शस्त राग अरहंत, सिद्ध और साधुओं के प्रति भक्ति, दान, पूजा आदि धर्म कार्यों में उत्साह और गुरुओं का अनुकरण करना होता है।
उपरोक्त कथन सत्य है कि राग अचेतन,यह ज्ञानी के भी होता है, अतः राग से प़भावित होना विकार है,यह चेतन की परिणति है लेकिन इसमें ज्ञानी प़भावित नहीं होता है।