राग द्वेष
राग दसवें गुणस्थान तक चलता है जबकि द्वेष नौवें स्थान तक।
कारण ?
दोनों ही कषाय से होते हैं। क्रोध और मान* द्वेष रूप हैं, जो नौवें गुणस्थान तक रहते हैं जबकि लोभ राग रूप जो कि दसवें गुणस्थान तक चलता है।
आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी(26 नवंबर)
* (ये दोनों प्रत्यक्ष रूप तथा मायाचारी अप्रत्यक्ष रूप)
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आर्यिका श्री पूर्णमती माता जी ने राग द्वेष का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए राग एवं द्वेष पर नियंत्रण रखना परम आवश्यक है।
‘राग’ aur ‘द्वेष’ me maaya kashaay ka role nahi hai ? Ise clarify karenge, please ?
राग दसवें गुणस्थान तक चलता है जबकि द्वेष नौवें स्थान तक।
कारण ?
दोनों ही कषाय से होते हैं। क्रोध और मान* द्वेष रूप हैं, जो नौवें गुणस्थान तक रहते हैं जबकि लोभ राग रूप जो कि दसवें गुणस्थान तक चलता है।
आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी(26 नवंबर)
* (ये दोनों प्रत्यक्ष रूप तथा मायाचारी अप्रत्यक्ष रूप)