सल्लेखना
क्षु.जिनेन्द्र वर्णी जी आचार्य श्री के सानिध्य में सल्लेखना ले रहे थे। एक बार आचार्य श्री को सम्बोधन करने में देरी हो गयी।
तब वर्णी जी बोले – आचार्य श्री आप मुझे छोड़ कर मत जाना।
आचार्य श्री – सल्लेखना तो स्वयं ली जाती है, किसी के सहारे से नहीं।
यही आचार्य श्री ने स्वयं करके दिखा दिया, किसी को पता ही नहीं कि सल्लेखना शुरु हो गयी है। अंत में जब अंतिम सांसें गिन रहे थे तब पता लगा कि वे तो सल्लेखना पहले ही ले चुके हैं।
2 Responses
सल्लेखना का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में कल्याण के लिए सल्लेखना का निर्णय स्वयं लेना परम आवश्यक है।
कल्पना के परे हैं आचार्य श्री। मुझे याद है एक बार परमपुज्य मुनि क्षमासागर महाराज जी से किसी ने पूछा कि आप इतनी वेदना कैसे सहन करते हैं। तब महाराज जी ने कहा था कि यह तो हम हैं कि हमारी पीड़ा हमारे मुख पर आपको दिख जाती है। आचार्य महाराज जी तो अपनी पीड़ा किसी को नजर तक नहीं आने देते। 🙏🏻🙏🏻🙏🏻