हिंसा
एक हिंसा, हिंसा के लिये → महान दोष।
दूसरी हिंसा, शुभ क्रियाओं में (पूजा, मंदिर निर्माण आदि) → जघन्य दोष।
जीव दोनों में मरे, दूसरी हिंसा में मरने वाले भी सुगति में नहीं जायेंगे क्योंकि उनको एहसास ही नहीं कि वे अच्छे काम के दौरान मरे हैं।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
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मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने हिंसा को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए अहिंसा के भाव रखना परम आवश्यक है।