क्षमा, मार्दव, आर्जव – भाव हैं, क्योंकि उनमें कुछ त्याग नहीं करना।
सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग – उपाय हैं, इनमें त्याग करना है।
तब आकिंचन्य, ब्रह्मचर्य सार बन जाते हैं।
मुनि श्री सुधासागर जी
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5 Responses
मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने दस धर्म की परिभाषा पर उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! अतः धर्म से जुडकर जो दस धर्मो का पालन करता है वही अपना कल्याण करने में समर्थ हो सकता है!
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मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने दस धर्म की परिभाषा पर उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! अतः धर्म से जुडकर जो दस धर्मो का पालन करता है वही अपना कल्याण करने में समर्थ हो सकता है!
Bahut hi sundar post hai for explaining the differences between das dharm !
What about ‘Satya’ dharm ?
अच्छा देखा,
सत्य include कर दिया।
आशीष।
My doubt has now been clarified with revision in post !