शिकायतें और सब्र
बस दो मसले जिंदगी भर ना हल हुए….
प्यास लगी थी गज़ब की…
मगर पानी में ज़हर था…
पीते तो मर जाते और ना पीते तो मर जाते ।
ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए !
वक़्त ने कहा….काश थोड़ा और सब्र होता !
सब्र ने कहा….काश थोड़ा और वक़्त होता !
सुबह सुबह उठना पड़ता है, कमाने के लिए साहेब…।
आराम कमाने निकलता हूँ,
आराम छोड़कर।
“हुनर” सड़कों पर तमाशा करता है और “किस्मत” महलों में राज करती है !
शिकायतें तो बहुत हैं, तुझसे ऐ जिन्दगी !
पर चुप इसलिये हूँ कि,
जो दिया तूने,
वो भी बहुतों को नसीब नहीं होता…
(शुचि)