Month: September 2010
उत्तम ब्रम्हचर्य
पांचों इंद्रियों के विषयों से विरक्त होने का नाम ही उत्तम ब्रम्हचर्य है । आचार्य श्री विद्यासागर जी मस्तिष्क माचिस की डिब्बी है, घिसने से
उत्तम आकिंचन्य
पैदा होते समय हर व्यक्ति दिगम्बर ही होता है, बाद में वह पीताम्बर, नीलाम्बर आदि बन जाता है, मरते समय भी दिगम्बर ही जाता है,
उत्तम त्याग
कोई और छुड़ाये उससे पहले खुद छोड़ना त्याग है, न छोड़ना मौत (न छोड़ने पर मौत तो सब कुछ छुड़ा ही लेगी) घर वाले निकालें,
उत्तम त्याग
दानी का सम्मान होता है, त्यागी पूजा जाता है, दान में बदले का भाव होता है, त्याग में नहीं, दान ऊपर से होता है जैसे
उत्तम तप
कल के संयम धर्म में इच्छाओं को कम करने का प्रयास था, आज के धर्म में इच्छाओं का पूर्ण निरोध करना है । संयम में
उत्तम संयम
सत्य धर्म की सजावट संयम से ही है । शराबखाने में बैठकर दूध पीने वाला भी बदनाम होता है । एक मकान में आग लग
उत्तम सत्य
चारों कषायों (क्रोध, मान, माया, लोभ) के समाप्त करने पर ही प्रकट होता है, अन्यथा लाग-लपेट आ ही जाती है । आज का धर्म अनाथों
उत्तम शौच
पवित्रता का नाम शौच है । एक संत सबको आशीर्वाद देते थे – ‘मनुष्य भव:’। पूंछने पर बताया – आकृति तो तुम लोगों की मनुष्य
उत्तम आर्जव
कपट नहीं करना या मन की सरलता को आर्जव कहते हैं । बच्चा चाहे आदमी का हो या जानवर का अपनी निष्कपटता के कारण सबको
उत्तम मार्दव
मान का ना होना मार्दव धर्म है । क्षमा पहला धर्म, एक Message छोड़ गया – ‘क्ष’ से क्षय करें, ‘मा’ से मान को ।
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