Month: May 2012
भाव
बाहर के झगड़े एक अवतारी होते हैं, लेकिन भीतर के बहुत जन्मों तक चलते हैं ।
भौतिक आकर्षण
पतंग को इतनी ढ़ील मत दो कि वह बहुत दूर चली जाये, वापस आने में बहुत देर हो जाये, या अटक जाये/टूट जाये, और कभी
चमत्कार
चमत्कार को नमस्कार नहीं, पर नमस्कार (समर्पण) करने के बाद चमत्कार होने लगते हैं । आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी
मोह
मोह पुण्य को पाप में परिवर्तित कर देता है । आचार्य श्री विद्यासागर जी (पुण्य से जो पुत्र आदि मिले हैं, उनसे मोह करके पाप
उदय/उदीरणा/अकाल मृत्यु
कुछ अपवादों के साथ छठवें गुणस्थान तक जिन कर्मों का उदय है उनकी उदीरणा भी अवश्य होती है । मनुष्यायु का हर समय उदय भी
कर्म
आग जले, धुंआ न उठे; पानी बरसे , कीचड़ न हो; कर्म करें मगर अहं से न भरें । आचार्य श्री पुष्पदंतसागर जी
स्थिरता
घड़ी टिक-टिक करके हर क्षण यह याद दिलाती है कि टिक (जीवन में स्थिरता ला) | आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी
खुशी
एक ऐसी चीज जो तुम्हारे पास नहीं होने के बाद भी, उसे तुम दूसरों को दे सकते हो । (श्री संजय)
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