Month: May 2012

शब्द/भाव

शब्दों में वज़न होता है, भाव उनमें जान ड़ालते हैं । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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बंधन

हम तो वंदन में भी बंधन रखते हैं , समय का/घर जल्दी लौटने का । आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी

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मन:पर्यय

विपुलमती मन:पर्यय ज्ञानी वर्धमान चारित्री ही होते हैं, अत: वे उपशम श्रेणी आरोहण नहीं करते । यदि वे उपशम श्रेणी आरोहण करेंगे तो यथाख्यात चारित्र

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Revenge

Live well and happily in this world… It’s the best revenge to those who have cheated you and avoided in their life. (Mr. Dhermendra)

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मंगल आशीष

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May 4, 2012