Month: October 2014

भाषा समिति

आचार्य श्री विद्यासागर जी कभी भी अपने शिष्यों की गलतियों को बताते नहीं, सिर्फ इशारा कर देते हैं । शिष्य खुद गलती स्वीकार कर प्रायश्चित

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तीसरा गुणस्थान

सादि मिथ्यादृष्टि तो तीसरे गुणस्थान में जा सकता है, अनादि नहीं । क्योंकि अनादि के सम्यक प्रकृति सत्ता में होती ही नहीं तो उदय में

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गति/ठहराव

वादविवाद में अटकन है/ठहराव है, भक्ति में गति । जिसके प्रति भक्ति की जायेगी, गति वहीं तक होगी जैसे दुकान के प्रति तो वहाँ तक,

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शांति

साधनों से शांति नहीं मिलती, साधना से मिलती है । मुनि श्री विश्रुतसागर जी

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सहारा

हर समय/हर बात के लिये सहारा लेने वाले जल्दी ही बेसहारा हो जाते हैं । जो हारा वह सहारा लेता है, दूसरों के सहारे कोई

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पाप/पुण्य

10 kg पंख या 10 kg पीतल में से क्या ढोना पसंद करोगे ? पीतल क्यों ? ढोने में आसानी लोगों की नज़र में कम

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तस्वीर

जिसको भी गलत तस्वीर दिखाई , उसे ही खुश रख पाया मैं ; दर्पण दिखाने पर तो , सारे ही रुठ गये मुझसे । (श्री

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इतिहास

इति + हास = वह भूतकाल जो हँसी का पात्र है । आचार्य श्री विद्यासागर जी (जन्म जन्मांतरों में किया क्या है ? जीवनों को

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गुण/धर्म

वस्तु में गुण भी, धर्म भी होते हैं । गुण स्वभावभूत हैं,परनिरपेक्ष है । धर्म परसापेक्ष, सद्भाव जीव में है पर ज्ञानादि के समान ये

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मंगल आशीष

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October 31, 2014