Month: March 2015
Thinking
Don’t climb mountain to show the world, but climb to see the world. (Arvind Barjatya)
प्रकृति
गाय का दूध निकालना – प्रकृति, दूध का फटना – विकृति, दूध से घी निकालना – संस्कृति । प्रकृति को विकृति से बचायें, संस्कृति की
उद्योत नामकर्म
एक से लेकर पंचेंद्री संज्ञी तिर्यंचों के होता है । गुणस्थान एक से पाँच तक । बाई जी
क्रोध
क्रोध आँधी है। अपने साथ विवेक तथा बुध्दि को उड़ा ले जाती है। आँधी के निकल जाने के बाद पता लगता है कि आँधी अपने
विचार-विमर्श
मक्खन निकालने की बिलौनी जैसा होना चाहिये विचार-विमर्श । एक तरफ की ड़ोरी खिंचे तो दूसरी ओर की ढ़ीली हो, तब मक्खन निकलेगा । यदि
Life
Life is “Exp+Exp+Exp”. Yesterday is Experience. Today is Experiment. Tomorrow is Expectation. Use your EXPERIENCE in your EXPERIMENT to Achieve your EXPECTATIONS……
यात्रा
संसार रूपी वृत से, बिंदु रूपी स्वयं की ओर आने की यात्रा ही सार्थक है । संसार को समेटने की इच्छा से, अपने आप में
दान/भोग/नाश
केला खाने के बाद छिलका गाय को, तो दानी । कचरे में, तो भोगी । सड़क पर, तो नाशी । कम से कम छिलके का
Superior
“The great thing a little lamp can do, which the big sun cannot do is – it gives light when it is dark”. No one
सुधारना / सुधरना
मेरी गलतियाँ मुझसे कहिये, औरों से नहीं ; सुधरना मुझे है, औरों को नहीं । (शिल्पी-हैदराबाद)
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