Month: July 2015

रिश्ता वही, सोच नयी

बहन से पूछा – भाई कैसा चाहिए ? रावण जैसा क्यों ? उसने अपनी बहन के लिये अपना राज्य दाँव पर लगा दिया । (शुची)

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मन

शरीर पूरा पवित्र नहीं हो सकता, फिर भी हम उसे पवित्र करने में लगे रहते हैं। मन पवित्र हो सकता है, पर उसकी ओर हमारा

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कृतज्ञता

पाँव सूखे पत्तों पर, अदब से रखना, धूप में माँगी थी तुमने पनाह इनसे कभी। (डा.मनीष)

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मतिज्ञान

इसमें पूर्णज्ञान होता है (धारणा तक) आभास नहीं, जातिस्मरण भी इसी से । श्रुतज्ञान आगे का विश्लेषण । मुनि श्री निर्वेगसागर जी

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कारण / भागेदारी

दूसरों के – सुख में “कारण” बनो, “भागीदार” नहीं । दुःख में “भागीदार”, “कारण” नहीं । (मंजू)

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मंगल आशीष

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July 5, 2015