मन
शरीर पूरा पवित्र नहीं हो सकता, फिर भी हम उसे पवित्र करने में लगे रहते हैं।
मन पवित्र हो सकता है, पर उसकी ओर हमारा ध्यान ही नहीं जाता ।
(ब्र. संजय)
शरीर पूरा पवित्र नहीं हो सकता, फिर भी हम उसे पवित्र करने में लगे रहते हैं।
मन पवित्र हो सकता है, पर उसकी ओर हमारा ध्यान ही नहीं जाता ।
(ब्र. संजय)
One Response
Someone has to make us realize the value/power of “pavitra mun”!