Month: January 2016
धर्म/अधर्म की सहकारता
हर प्रदेश पर धर्म और अधर्म विद्यमान हैं, तो जीव/पुदगल चले या रुके ? दोनों ही उदासीन हैं, जीव/पुदगल चलना चाहें तो धर्म द्रव्य सहकारी
कार्य/कर्म
सभी कार्य कर्म नहीं, यश और फल की कामना से किया गया “कार्य” है । निष्काम कार्य ही “कर्म” है ।
सुख और उम्र
जिंदगी भर “सुख” कमाकर दरवाजे से घर में लाने की कोशिश करते रहे। पता ही ना चला कि कब खिड़कियों से “उम्र” निकल गई !!
सराहना / दगा
संभाल के रखना अपनी पीठ को , शाबाशी हो या ख़ंजर दोनों के निशान पीठ पर ही मिलते हैं । (डा.पी.एन.जैन)
Intelligence
We all are born Genius, company makes us idiots. जैसे गधों की संगती में रहकर शेर भी गधों जैसा व्यवहार करने लगता है ।
स्वभाव
मनुष्य का स्वभाव – आधा सुनना, चौथाई समझना, शून्य पर चिंतन करना, पर प्रतिक्रिया दुगनी करना । (अरुणा)
म्लेच्छ खंड़
सम्यग्दर्शन यहाँ नहीं होता (सबका गुणस्थान 1), इसको छोड़कर आर्यखंड़ में आने पर हो सकता है । यहाँ लब्धिपर्याप्तक नहीं होते क्योंकि वातावरण साफ सुथरा
छल
छल का आशय यदि धर्म हो, तो छल भी धर्म बन जाता है । (जैसे माँ बच्चे की सेहत का ख्याल करके लड़्ड़ू छुपा देती
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