Month: March 2018

निर्माल्य

भगवान के लिये निवेदित/अनिवेदित संकल्पित सामग्री । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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उपादान

“उप” = अंतरंग/समीप, “आदान” = ग्रहण करने की क्षमता । (धर्मेंद्र)

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अह्म

अ= नहीं, हम जिसमें अपने को भूल जाय, उसे अह्म कहते हैं याने वह्म में रहना ।

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ज्ञान/चारित्र

ज्ञान के बिना चारित्र भार है जैसे प्राण-रक्षक दवा भी बिना ज्ञान के प्राण-घातक बन जाती है तथा बिना प्राण के इंद्रियाँ । श्री पुरुषार्थसिद्धिउपाय

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संगठन

बुराईयों में आकर्षण होता है, बुरे लोगों के अचेतन मन में भय रहता है, इसलिये वे संगठित रहते हैं । अच्छों में प्राय: घमंड़ आ

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संस्कृति / सभ्यता

संस्कृति/सभ्यता आंतरिक, स्थायी, भारतीय चेतना को परिष्कृत करती है/जीवन को सुधारती है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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कर्म/भोग भूमज

नाभिराय, बाहुबली आदि भोग भूमि में पैदा होने पर भी कर्म भूमिया थे क्योंकि उनकी आयु 1 कोटि पूर्व से अधिक नहीं थी । श्री

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भाग्य / पुरुषार्थ

लॉकर की दो चाबियाँ हैं, अमूल्य निधी दोनों के लगने पर ही मिलेगी । पुरुषार्थ की चाबी हमारे पास है, भाग्य की मैनेजर के पास

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केवल दर्शन / ज्ञान

केवल-ज्ञान बाह्य उद्दोत । केवल-दर्शन अंतरंग, उत्तर से दृष्टि हटाये बिना, दक्षिण में देखने का प्रयास, 1Sec.या कम दर्शनोपयोग काल है । मुख्तार जी व्य.कृ. – 2/828

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मंगल आशीष

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March 21, 2018