Month: May 2018
ईश्वर को मानना
ईश्वर को मानना यानि खुद ईश्वर बनने की क्षमता को मानना, विश्वात्मा बनने पर विश्वास, अंधे को आँख मिलने पर विश्व देखने पर आस्था ।
एकेंद्रिय
इनमें अंगोपांग का उदय नहीं होता, पर यश/अपयश तथा परघात/उपघात का होता है । मुख्तार जी व्य.कृ.
साधना
संसार में मन की बात ज़ुबान पर ना आने देना, ज़ुबान की बात/शरीर पर ना आने देना, तथा धर्म में मन से वचन, वचन से
कर्म बंध
जो कर्म-सिद्धांत पर विश्वास नहीं करते उनके कर्मबंध, सम्यग्दृष्टि से बहुत ज्यादा होता है (सम्यग्दृष्टि के तो अंत: कोड़ा कोड़ी के बंधते हैं) । मुनि
निर्मोह
जिसने घर से पैर निकाल लिया, उसका घर घरोंदा बन गया । वही उस घर को लात मार सकता है । * आचार्य श्री विद्यासागर
चरण-चिन्ह/मूर्ति
चरण-चिन्ह महिलाऐं छू सकतीं हैं; वे चिन्ह हैं, चरण नहीं । मूर्ति में भगवान की स्थापना है/उन्हीं का आकार है/उनमें भगवान ही देखे जाते हैं
धर्मात्मा
रावण 8 घंटे पूजादि करता था, पर बाकि 16 घंटे भगवान के बताये मार्ग से विपरीत आचरण करता था, इसलिये दुर्गति पायी । मुनि श्री
प्रायश्चित
आदिपुराण में भीमसेन मुनिराज प्रायश्चित तप से केवलज्ञान प्राप्त किये । बाई जी
पूर्ण विकास
खिले फूलों को देख खुश मत हो जाना, विकास की सार्थकता तो पराग पर से अंदर की पंखुड़ियाँ हटाना है/खुशबू बिखेरना है , संस्कारों की
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