Month: May 2018
कर्मों में परिवर्तन
कर्मों में उत्कर्षणादि हर समय अबुद्धिपूर्वक होता रहता है । पर मोक्ष के हेतु निर्जरादि/तप बुद्धिपूर्वक होता है । मुनि श्री सुधासागर जी
Response
Always ignore hateful attitude & rude behavior of the people. They are powerless without your response. ((Mr. Sanjay)
संस्कार
बच्चों को याद करायें – 1. पाप से भय 2. संवेदनशीलता 3. धर्म कुल का गौरव मुनि श्री प्रमाणसागर जी
जाप
“ज” – जीवन यापन के लिये, “प” – पाप के नाश के लिये । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
दिल
दिल से ज्यादा “ऊपजाऊ” जगह और कोई नहीं है ! क्योंकि यहाँ जो कुछ “बोया” जाये,बढ़ता ज़रूर है !! फिर चाहे वो “प्यार” हो……. या
नो कर्म
कर्म अपना फल नोकर्म के निमित्त से देता हैं । नोकर्म प्रभावित करता है या आप प्रभावित होते हैं ? तीव्र कर्म के उदय में
मुखिया
घर के मुखिया की हालत उस टिन के शैड जैसी होती है जो बारिश, तूफान, ओलावृष्टि सब झेलता है, लेकिन उसके नीचे वाले कहते हैं
राग
कितना महफूज़ था गुलाब, काँटों की गोद में…. लोगों की “मोहब्बत” में, पत्ता-पत्ता बिखर गया….! अरविंद
गुरूर
गुरूर में इंसान को कभी इंसान नहीं दिखता, जैसे छत पर चढ़ जाओ, तो अपना ही मकान नहीं दिखता । नीलम
Recent Comments