Month: September 2018

असाता और भूख

असाता से भूख लगती है , भूख ना लगना, तीव्र असाता से । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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प्रलय

प्रलय विनाश नहीं करती, (गंदगी समाप्त करके) Major परिवर्तन करके, नया/जैसा का तैसा बनाने में निमित्त बनती है ।

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अनेकांत

मेरा सो भला = एकांत, भला सो मेरा = अनेकांत । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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निर्वाह और निर्वाण

जब वर्तमान में निर्वाह आराम से चल रहा है तो कल के निर्वाण की चिंता क्यों करें ? ताकि कम से कम, कल का निर्वाह

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दान / त्याग

दान में पुण्यबंध, त्याग में पुण्यबंध नहीं, इसमें तो शुद्ध होते हैं,पाप/पुण्य से परे जैसे मुनिराज । मुनि श्री सुधासागर जी

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भाव

नाटक की परिभाषा – बिना भाव की क्रिया । क्या हम भी धार्मिक क्रियायें ऐसे ही तो नहीं कर रहे हैं ?

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संलेखना

संलेखना इस जीवन का कलश भी है और अगले जन्म की नींव भी । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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कामना

कामना उतनी ही करो जितनी औकात हो (पुण्य हों) । मज़दूर ने ज़मींदार की शानदार घोड़ी देख, भगवान से ऐसी ही घोड़ी मांगी । तभी

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अंजीर

त्रस जीवों की हिंसा के अलावा, अंजीर का पेड़ स्वार्थी/क्रूर भी होता है । जिस पेड़ पर पनपता है, उसे पूरी तरह से ढ़ँक लेता

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मंगल आशीष

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