Month: October 2018
चक्रवर्ती के चेतन-रत्न
रत्न यानि खास/मुख्य, जैसे पटरानी/सेनापति आदि । चक्रवर्ती के जाने के बाद इनकी मुख्यता समाप्त हो जाती है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
अनंत बार ग्रैवियक
अनंत बार ग्रैवियक गये, कुछ नहीं हुआ; इससे मुनि पद की भूमिका कम नहीं हुई, मिथ्यात्व(या पुरुषार्थ की कमी) का दोष है । मुनि श्री
अनाधिकार चेष्टा
चन्द्रमा भी जब सूर्य के समय में अनाधिकार चेष्टा करके घुस आता है, तब निस्तेज हो जाता है । चिंतन
अतिचार / अनाचार
अतिचार – प्रायश्चित भाव सहित, अनाचार – प्रायश्चित भाव रहित । क्षु. श्री जिनेन्द्र वर्णी जी
निमित्त
तुमसे मेरे कर्म कटे, मुझसे तुमको क्या मिला ? आचार्य श्री विद्यासागर जी
मंदिर / चैत्यालय
मंदिर यानि घर, चाहे भगवान का हो या अन्य किसी का, चैत्यालय यानि चैत्य (मूर्ति) जिसमें विराजमान हों । मुनि श्री सुधासागर जी
धर्म
करने योग्य क्रियायें करना ही धर्म नहीं, उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है, अकार्य को ना करना ।
विषय-भोग
विषय-भोग पीटते हैं (शरीर को) और लूटते भी हैं (आत्मा को) । मुनि श्री विनिश्चयसागर जी
भाग्य / पुरुषार्थ
भगवान के भरोसे क्यों बैठे रहते हो ! क्या पता भगवान आपके भरोसे बैठा हो । (प्रांजल)
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