Month: December 2018
व्रती / मिथ्यादृष्टि
व्रती चाहे मिथ्यादृष्टि हो पर हिंसा नहीं करेगा, अव्रती चाहे क्षायिक-सम्यग्दृष्टि हो, सगे भाई को मारने में भी ना झिझके – जैसे भरत चक्रवर्ती ।
गति / स्थिरता
गति का महत्व, जब दिशा निर्धारित तथा सही हो । स्थिरता तब, जब गंतव्य पर पहुँच जांय या झंझावात से गुज़र रहे हों ।
अर्धनारीश्वर
भगवान का एक नाम । यानि उन्हें आनंद/सुख के लिये नारी की जरूरत नहीं । समता भाव पुरुष, नारी में । मुनि श्री सुधासागर जी
परमात्मा
परमात्मा एक अवस्था है जो व्यवस्था नहीं करती बल्कि जिसके माध्यम से हम व्यवस्थित हो जाते हैं । परमात्म अवस्था किसी भी जीव को प्राप्त
आर्त/रौद्र ध्यान
ज्ञान की एकाग्रता को ध्यान कहते हैं । हमारा ज्ञान क्षयोपशमिक है । इसलिये ये “ध्यान” क्षयोपशमिक भाव हुये । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
प्रेम / वासना
जो सम्बधियों से सम्बंध तुड़वाने में निमित्त बने, वह वासना; जो सम्बंधों को बढ़ाये/द्रढ़ करे वह प्रेम ।
तत्व / पदार्थ
तत्व… भाव जैसे पूजा के भाव, पदार्थ.. जिसमें भाव होते हैं जैसे पुजारी ।
पावनता
उत्कृष्ट पावनता स्वयं के पावन होने में नहीं बल्कि दूसरों को पावन करने में है ।
स्थापना
धर्म में तदाकार स्थापना ही होती है । तदाकार भी दो प्रकार की—पूज्य और अपूज्य । ठौने पर चावल चढ़ाना पूजा का संकल्प है/व्यवहार है
अहिंसा
दो प्रकार – 1. नकारात्मक – किसी को ना मारना/सताना 2. सकारात्मक – दूसरों की सेवा/रक्षा करना मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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