Month: February 2019
नाम
“सागर” उनके नाम के आगे, जिनका सोच/लक्ष्य असीम है , अजितकुमार का सोच/लक्ष्य जब असीम हुआ तब उनका नाम “अजितनाथ” हो गया था । मुनि
यथार्थ स्वरूप
जैसे भगवान, वैसा मैं – अभिमान आयेगा, प्रगति का भाव नहीं होगा । जैसी चींटी, वैसा मैं – हीनता का भाव आयेगा । “जैसा मैं,
अनेकांत
वीतराग-धर्म अनेकांत मय के साथ साथ एकांतमय भी है, जैसे… सम्यग्दर्शन से ही मोक्ष मिलता है, देखने का काम आँख ही करती है ।
स्वाभिमान/अभिमान
स्वाभिमान में अपना तथा दूसरे का मान, अभिमान में अपना मान तथा दूसरे का अपमान । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
शुभ/शुद्धोपयोग
सच्चे देव, गुरु, शास्त्र के प्रति राग – शुभोपयोग उनके गुणों को अपने में उतारना – शुद्धोपयोग
साधु / श्रावक
परीक्षा तो दोनों की होती है, साधु परीक्षा के लिये सदैव तैयार/इच्छुक रहता है, श्रावक घबराता है, पर पास होने पर नाचता है, फेल होने
ब्रम्हचर्य
ब्रम्हचर्य की 5 भावनायें – तत्वार्थ सूत्र – 7/7 पाँचों इंद्रियों के नियंत्रण की भावनायें हैं । पं श्री रतनलाल बैनाड़ा जी
पंचमेरू
जिनमें मूर्तियों के अंग उपांग साफ साफ दिखें, हस्तदंतों पर भी मूर्तियाँ हों, वे पंचमेरू ही पूज्यनीय है, उनके आकार नहीं । मुनि श्री सुधासागर
निशानियां
हम लोग भी कितने अज़ीब हैं ! निशानियाँ महफ़ूज़ रखते हैं, और लोगों को खो देते हैं । (सुरेश)
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