Month: October 2019
कषाय
लोभ कषाय के 2 प्रकार – प्रशस्त – हितकारी अप्रशस्त – अहितकारी बाकी तीनों कषाय अप्रशस्त ही होती हैं । ज्ञानशाला
नियम
आ. श्री. (विद्यासागर जी) आप आहार के समय नियम क्यों नहीं दिलवाते ? आ. श्री….. “2-4 आहार देने के बाद घर ही छोड़ देता है,
स्त्री
स्त्री को … अर्द्धांगिनी सम्बोधन तो कविओं की भाषा है । वे तो अष्टांगिनी हैं, तभी तो साष्टांगिनी हैं । आचार्य श्री विद्यासागर जी
उपशम / उपशमन
उपशमन अंतर्मुहूर्त के लिये, उपशम (सदवस्था रूप) – 66 सागर तक । आचार्य श्री विद्यासागर जी
ऊर्जा
सूरजमुखी सूर्य की ओर मुँह करके प्रकाश से ऊर्जा लेते हैं । बादल छा जाने पर वह अपने मुँह दूसरे सूरजमुखी फूलों की ओर करके
दान
दान अपने से अधिक पुण्यात्मा को जैसे मुनियों को आहार-दान । सहयोग (करुणा-दान) हीन-पुण्यात्मा को ।
समता
भूतकाल के विकल्पों तथा भविष्य के भय से विचलित ना होना । जैसे छोटे छोटे बच्चे और साधु अनुकूल/प्रतिकूल परिस्थतिओं में समता रखते हैं ।
स्थिति – बंध
स्थिति – बंध तो पाप/पुण्य दोनों प्रकृतिओं का अप्रशस्त है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
प्रेम/ज्ञान
इन दोनों में बड़ा कौन ? प्रेम उसके लिये बड़ा जो दहलीज़ पर खड़ा हो, ज्ञान उसके लिये बड़ा जो अंदर पहुँच गया हो ।
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