Month: October 2019
ज्ञेय / हेय
ज्ञेय तो हेय है । आचार्य श्री विद्यासागर जी क्योंकि जिसे जानोगे उससे रागद्वेष होगा ही, सो हेय हो जायेगा । पं श्री रतनलाल बैनाड़ा
तप / त्याग
त्याग बाह्य वस्तु का, तप अंतरंग इच्छाओं का (इच्छा निरोध: तप:) मुनि श्री सुधासागर जी अपेक्षा निरोधः तपः आचार्य श्री विद्या सागर जी
स्वमुख / परमुख
स्वमुख – विष को विषरूप खाना (मरण) परमुख – विष को औषधि रूप खाना (रोग निवारण) आचार्य श्री विद्यासागर जी
विनय मिथ्यात्व
गये थे श्यामलाल की शादि में पर रामलाल के बैंड़ अच्छे बज रहे थे सो वहाँ नाचने लगे । मुनि श्री पुलकसागर जी
पाप पुण्य
इस युग में पाप ज्यादा या पुण्य ? ज्यादा कैसे ?? उत्तर… अंधे ज्यादा या दोनों आँखों से देखने वाले ? अपाहिज कितने ? स्वस्थ
गर्भावस्था में धर्म
5 माह की गर्भावस्था तक मुनियों को आहार दे सकते हैं । पूजा व तीर्थयात्रा 9 माह तक, सीता को वनवास तीर्थयात्रा के बहाने 7वें
द्रव्यों में परिणमन
पुदगल में परिणमन दिखता है, अन्य द्रव्यों में कैसे समझें ? हाँड़ी के चावल पके या नहीं, समझने के लिये एक चावल देखकर समझ लिया
Insincerity
If you are insincere, it’s manipulative. (क्योंकि sincerity तो आत्मा का स्वभाव है)
Recent Comments