Month: January 2021
धर्मध्यान और कर्म-क्षय
तीर्थंकरों के भी कितने कर्म आत्मा से चिपके रहते हैं कि उनका क्षय करने के लिये आदिनाथ भगवान को 1000 वर्ष धर्मध्यान करना पड़ा !
बारह भावनाओं में धर्म
बारह भावनाओं में “धर्म” अंत में क्यों लिया ? पहली भावनाओं से मन शांत होता है, तभी तो “धर्म” प्रवेश कर पायेगा ! मुनि श्री
विनय
सब विनयों में, उपचार-विनय (शिष्टाचार में) Practical है । इसमें 100% नम्बर सहजता से ला सकते हैं । आचार्य श्री विद्यासागर जी
निर्जरा
पूजा से भी निर्जरा होती है, पर उससे ज्यादा स्तुति, और-ज्यादा जप, सबसे ज्यादा ध्यान से । मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
स्मरण तथा पुण्यार्जन
स्मरण तथा पुण्यार्जन के लिये भुला-भुला कर पढ़ना चाहिये । आचार्य श्री विद्यासागर जी
उपयोग
1. अशुभोपयोग में यदि आयुबंध हुआ तो कुमानुष, देव भी बने तो भवनत्रिक । पापबंध तो होगा ही । 2. शुभोपयोग में सब शुभ करने
मन
विज्ञानानुसार मूड, भावनायें, स्मृतियाँ मन से होती हैं, धर्मानुसार इनका बदलना/नियंत्रण करना हमारे हाथ में है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
भगवान पर उपसर्ग
भगवान पर उपसर्ग केवलज्ञान के बाद ही नहीं, ग्रहस्थ अवस्था में भी नहीं होते हैं । क्योंकि… इन्द्र/देव उनकी सेवा/रक्षा में लगे रहते हैं ।
विनय
विनय यानि सामने वाले के अनुकूल प्रवृत्ति करना । ख़ुद से पूछें… क्या हम बड़ों/ गुरु/ शास्त्र और भगवान की विनय करते हैं ? मुनि
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