Month: February 2021
श्रुत-रचना
अंतिम श्रुत केवली आचार्य श्री भद्रबाहु ने शास्त्रों की रचना खुद क्यों नहीं की ?———————————-पुष्किन श्रुत केवली का ज्ञान अथाह होता है, उसे कलमबद्ध करना
क्रोध
कार का इंजन, फेल/बंद होने के काफी देर पहले से गर्म होना शुरु हो जाता है । यदि समय रहते पानी डाल कर ठंडा कर
दिव्यध्वनि
दिव्यध्वनि तो भगवान की, फिर उसे देवकृत अतिशय क्यों कहा ? क्योंकि देवता दिव्यध्वनि को 12 कोठों में सुचारु रूप से सुनाने में सहायक होते
पुदगल / आत्मा / परमात्मा
तीनों को प्रत्यक्ष उदाहरण से समझाइए ? प्रश्नकर्ता की पिटाई चालू कर दी । वह चिल्लाने लगा – प्रभु! बचाओ-बचाओ । जो पिट रहा था
कर्म-सिद्दांत
जैसे ऊँट की चोरी छुपती नहीं है, वैसे ही कर्म-फल को भी छुपा नहीं सकते । मुनि श्री महासागर जी
रमण
जहाँ रमण नहीं, वहाँ स्मरण । आचार्य श्री वसुनंदी जी सम्यग्दृष्टि देव रमण में भी शुभ स्मरण तथा मिथ्यादृष्टि शुभ रमण में भी अशुभ स्मरण
अनुभव / अनुभूति
अनुभव दूसरों का भी होता है(काम स्वयं के भी आता है) जैसे ज़हर से दूसरों को मरते देखकर होता है । अनुभूति स्वयं की ही
मध्यलोक
नीचे सात पृथ्वीयें, ऊपर अष्टम, हमारी कौन सी पृथ्वी ? मध्यलोक, प्रथम चित्रा पृथ्वी के ऊपर है । सुमेरू आदि इसी के उठे भाग हैं
आभार
उन्हीं का, जो दूसरों पर भार नहीं बनते, तथा धरती और माँ की तरह सबका भार सहन करते हैं, खुशी-खुशी ।
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