Month: February 2021
भव्य
हम कौन से भव्य ? क्या हम भगवानों के समवसरण में गये थे ? जरूर गये थे, वरना आज धर्म के संस्कार नहीं आते ।
शिक्षा और नौकरी
जब तक शिक्षा का उद्देश्य नौकरी रहेगा तब तक समाज में नौकर ही पैदा होंगे, मालिक नहीं । मुनि श्री उत्तमसागर जी
जीव / आत्मा
वैसे तो दोनों पर्यायवाची हैं (भावात्मक दृष्टि से) पर व्यवहार में जीव का प्रयोग ही होता है – जैसे जीवों की रक्षा, आत्मा की रक्षा
सच और झूठ
सच बढ़े या घटे, तो सच न रहे; झूठ की कोई इंतहा ही नहीं । श्री कृष्ण विहारी नूर (अरविंद)
चक्रवर्ती का मान
चक्रवर्ती का मान वृषभाचल पर्वत पर नाम लिखने की जगह न मिलने से खंडित नहीं हुआ था, वरना वैराग्य न हो जाता ! हाँ !
यात्रा
संसार तथा परमार्थ की यात्रायें, सूक्ष्म से शुरु होकर अंत भी सूक्ष्म पर ही समाप्त होती हैं । जन्म/मृत्यु (एक cell से राख), सूक्ष्म निगोदिया
चारित्र धारण
जिसने अपने बाल स्वंय नहीं उखाड़े, उसके बालों को दूसरे उखाड़ेंगे । इस जन्म में मुनि नहीं बने/बनने के भाव नहीं रखे, तो अगले भव
मुनियों के आहार
मुनि तो रूठे हुये बच्चे जैसे आहार लेते हैं, छोड़ने के बहाने ढ़ूँढ़ते रहते हैं । सतीश – ग्वालियर
राग
संसारियों से राग हमको कमज़ोर करता है, भगवान/ गुरु से राग हमको मज़बूत करता है । ब्र. रेखा दीदी
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