Month: September 2022
असंख्यात गुणी निर्जरा
इसे गुण श्रेणी निर्जरा भी कहते हैं। गुण = निर्जरा गुणाकार रूप से। श्रेणी = पंक्ति में एक के बाद एक। पहले समय में जितना
दया
“पर” के ऊपर की गयी दया से स्वयं की याद आती है (आत्मा की, उसके दया स्वभाव की)। जैसे चंद्र पर दृष्टि डालने से, नभ
केवलज्ञान
केवलज्ञान अनादि-निधन होता है, पूर्ण होता है, इसलिये तीर्थंकरों के सिद्धांतों में अंतर नहीं होता, सो दिव्य-ध्वनि भी अनादि-निधन हुई। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
लोभ
करोड़पति (बड़ा) बनने के लिये लखपतिपने (छोटे को/लोभ) को छोड़ना पड़ेगा। ऐसे ही संसार का लोभ/ आकर्षण छोड़ने पर ही मोक्ष प्राप्त हो सकेगा। चिंतन
स्वाध्याय
एक आचार्य-प्रणीत ग्रंथ का स्वाध्याय हमेशा चलना चाहिये, क्योंकि इस प्रकार के ग्रंथों से वैराग्य और संवेग बना रहता है। आचार्य श्री विद्यासागर जी
आत्मा
आत्मा समझ में नहीं आता तो अनात्मा को समझ लो। “पर” को भूलने की कला सीख ली तो स्व (आत्मतत्त्व) प्राप्त हो जायेगा। आचार्य श्री
सम्यग्दृष्टि
1. जो अपनी उम्र संयम लेने के दिन से गिने। 2. स्व-आश्रित होकर वह काम करे जो पराश्रित होकर करना पड़ा था जैसे कोरोना के
धन से सम्बंध
धन से सम्बंध उतना ही रखो जैसे दीपक जलाते समय माचिस और तीली का होता है। तीली के ज्यादा पास आये तो जल जाओगे, तब
परिषह-जय
परिषह-जय Extra Course है। मूल Course तो 28 मूलगुणों का पालन है। परिषह इतना ही सहें जिससे शारीरिक/मानसिक संतुलन ना बिगडे। परिषह-जय तो उत्कृष्ट की
धर्म
महावीर भगवान ने सृष्टि के अनुरूप अपनी दृष्टि बनायी। बौद्ध आदि जैसा महावीर भगवान के नाम से कोई धर्म नहीं बना। दया, चारित्र, वस्तु के
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