Month: September 2022
सम्यग्दर्शन के अंग
सम्यग्दर्शन के 8 अंगों में से पहले 4 व्यक्तिगत हैं/स्वयं के लिये – निशंकित, निकांक्षित, निर्विचिकित्सा, अमूढ़दृष्टि। इनके प्रतीक हैं – दोनों पैर और दोनों
तुलना
रेखा 5 K.M. 50″ पहुंचती है, सरिता 40″ में, स्वस्थ कौन? पर अन्य Factors पर ध्यान दिया? सरिता यदि बालू पर! उनकी उम्र, वजनादि पर।
करणानुयोग
“करण” के दो अर्थ – 1. परिणाम 2. गणित अनुयोग के प्रसंग में गणित ही लिया गया है क्योंकी आचार्य श्री समंतभद्र स्वामी ने कहा
मैं
मैं के साथ विशेषण “अह्म” को जन्म देता है, हटते ही/”मैं” को “मैं रूप” देखते ही “अर्हम” आ जाता है। “अह्म” से “अर्हम” तक की
भाग्य/पुरुषार्थ
संसार सागर में कश्ती तो भाग्य की लहरों/हवा के सहारे ही चलती/पहुँचती है। पुरुषार्थ का काम तो बस डूबने से बचाने के लिये Balance बनाये
नज़दीकियाँ/दूरियाँ
पास में बैठे व्यक्त्ति से भी यदि मोबाइल से सम्पर्क करना हो तो सिग्नल दूर टॉवर/सैटेलाइट पर जाकर वापस आते हैं। सर्वार्थसिद्धि (जो मोक्ष के
गरीब
अमीर भी गरीब तब बन जाता है जब उसे अपने से ज्यादा अमीर की अमीरी दिखने/खलने लगती है। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
वीर्यांतराय
इन्द्रियों के बढ़ने से वीर्यांतराय का क्षयोपशम तथा आत्मा/ शरीर की शक्त्ति बढ़ती है। वीर्यांतराय का क्षयोपशम बढ़ने से ज्ञान बढ़ता है तथा ज्ञान बढ़ने
निश्चित
जो निश्चित है, उस पर विश्वास न होने से संकल्प/विकल्प रूप मानसिक दु:ख होता है। निश्चित को मानने से संतोष आ जाता है जैसे मृत्यु
श्वासोच्छवास
यह प्रक्रिया बिना नाक वालों में कैसे होती है ? श्वासोच्छवास तो एक इन्द्रिय तक के जीवों में भी बतायी है ? बिना फेंफड़े वाले
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