Month: October 2022
धर्म्य
धर्म = पूजा पाठादि। धर्म्य = आत्मा में धर्म/ धर्ममय आत्मा। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
अच्छाई / बुराई
जब किसी में भी कुछ अच्छा दिखाई नहीं देता हो…! तब समझ लेना कि… स्वयं में बुरा ढूँढने का समय आ गया है…!! मुनि श्री
शीलव्रतेष्वनतिचार
शील * = स्वभाव में रहना/ ब्रम्हचर्य/ महाव्रत। ष्व = बहुवचन। अनतिचार = अतिक्रम, वृतिक्रम, अतिचार, अनाचार रहित। प्रकाश छाबड़ा * अहिंसादि व्रतों की रक्षा
गुरु / सम्रद्धता
भारत को जब सोने की चिड़िया कहा जाता तब ग्रीस से कुछ लोग कारण समझने आये। पता लगा – भारत का राजा अच्छा है। राजा
सुख
परमयोगियों के रागादि से रहित होने के कारण, उनका सुख आत्मिक सुख/ स्वसंवेदन माना जाता है। वे सिद्धों की अपेक्षा से तो समानता नहीं रखते
दृष्टिकोण
सागर से कहा — देखो ! ये सूरज कितना दुष्ट है, तुमको जलाकर तुम्हारा पानी हड़प लेता है। सागर — नहीं वह मुझ पर और
“ज्ञानावरणे प्रज्ञा-अप्रज्ञाने”
ज्ञानावरण के सद्भाव में व अन्य कर्मों के सद्भाव में भी, ज्ञानावरण के क्षयोपशम से जो ज्ञान प्रकट होता है, वह प्रज्ञा है, जो प्रकट
बुराई /अच्छाई
बुराई कैसी भी हो, उसका अन्तिम संस्कार अच्छाई ही करती है…! (अनुपम चौधरी)
धन्य-तेरस
जब भगवान की तीर्थंकर-प्रकृति की उदीरणा होना बंद हो जाती है तब भगवान योगनिरोध करने के लिए समवसरण छोड़ देते हैं। उस समय देवता रत्नों
अहंकार
बादलों से चट्टानों ने शिकायत की… चारों ओर तुम हरियाली कर देते हो, मुझ पर एक घास का तिनका भी नहीं उगाते ! बादल… इसमें
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