Month: November 2022
संस्थान / केवलज्ञान
केवलज्ञान वामन (अन्य सारे संस्थानों के साथ भी) संस्थान के साथ भी हो सकता है तथा केवलज्ञान के बाद भी वही बना रहेगा क्योंकि इसका
ग्रंथि
ग्रंथि 2 प्रकार की – 1) चीज़ों के सद्भाव में (Superiority Complex से)… a) वैभव की ग्रंथि b) व्रतियों में त्याग की 2) चीज़ों के
जैनत्व की पहचान
1. पानी छानना – त्रस जीव रक्षा 2. रात्रि भोजन त्याग – पर जीव रक्षा 3. देवदर्शन – स्व-जीव रक्षा मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
संग्रह / परिग्रह
संग्रह इसलिये ताकि अपने और दूसरों के आपात-काल में काम आये। परिग्रह…”चमड़ी जाये पर दमड़ी न जाय” की प्रवृत्ति। इसलिये संग्रह का विरोध नहीं पर
पांडुलिपि
पंडित जी… दुर्भाग्य, मूलाचार की मूल पांडुलिपि जर्मनी में है, हम सुरक्षा नहीं कर पाये। आचार्य श्री… कोई बात नहीं, वहाँ द्रव्य-लिपि हो सकती है,
संयम
ज्ञान को क्षायिक तथा सम्यग्दर्शन को परम-अवगाढ़, संयम ही बनाता है। आचार्य श्री विद्यासागर जी
ताना-बाना
कपड़ों की सारी डिजाइन ताने-बाने पर ही निर्भर करतीं हैं… सुंदर/ असुंदर। जीवन में इनका नाम रागद्वेष है। सुंदर…. अहिंसा, वीतरागता। चिंतन
जैन दर्शन
नियत को अनियत बनाना जैन दर्शन है। इसीलिये श्रमण न नियत विहार/ न नियत आहार करते हैं। मुनि श्री सुधासागर जी
घमंड
घमंड दबे पांव आता है, छम छम करता हुआ नहीं। एकता – पुणे (प्रतिक्रिया निकलती है छम छम करके)
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