Month: November 2022
उतावली
वैरागी कभी उतावली नहीं करता। मोक्ष जाने को “धावत” नहीं, “गच्छति” कहा है। मोक्ष में वैरागी भाव नहीं। वैरागी का आनंद तो पकते आम जैसा
सबका
जो परिवार में सबका, वह परिवार का मुखिया; जो समाज में सबका, वह गुरु; जो संसार में सबका, वह भगवान। चिंतन
अर्हम्
अर्हंत् रूप है। पूजा तथा भक्ति में एवं बीजाक्षर के रूप में, ध्यान में भी प्रयोग किया जाता है। मुनि श्री सुधासागर जी
धन / उपयोगिता
धन से नहीं, मन से अमीर बनें, क्योंकि मंदिरों में स्वर्ण कलश भले ही लगे हों लेकिन नतमस्तक पत्थर की सीढ़ियों पर ही होना पड़ता
अतिथि संविभाग
अतिथि संविभाग में जैसे अपने लिये बनाये गये भोजन में से अतिथि को उचित भाग देते हैं, वैसे ही ज्ञान अपने लिये अर्जित करके उसमें
मोक्षमार्ग
ठंडे बस्ते में, मन को रखना ही, मोक्षमार्ग है। आचार्य श्री विद्यासागर जी
कल्प-काल
कल्प-काल की शुरुवात अवसर्पिणी से होती है। उत्सर्पिणी में तो काल उल्टे चलते हैं। मुनि श्री सुधासागर जी
अच्छा/बुरा बुज़ुर्ग
घर में पेंट करते समय कारीगर ने रंग दिखा कर सहमति चाही। बुढ़ापे में वैसे तो नज़र भी कमज़ोर हो जाती है; दूसरा – अच्छे
सोहम्
सोहम् भविष्य की अपेक्षा। “हम” वर्तमान की अपेक्षा, पर सावधान “अहम्” आ सकता है। मुनि श्री सुधासागर जी
सरलता
सरल रेखा दिखती आसान है पर खींचने में बहुत सावधानी/ यत्नाचार चाहिये। आचार्य श्री विद्यासागर जी
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