Month: November 2022
निमित्त
दीपक में घी बाती होते हुये भी बिना माचिस के प्रकाशित नहीं। प्रारम्भिक सम्यग्दर्शन गुरु के बिना नहीं, अंतिम सम्यग्दर्शन (क्षायिक) केवली पादमूल के बिना
निस्सार
संसार की निस्सारता वही समझ पाते हैं जिनमें कुछ सार हो। (पापी/ भोगी के जीवन सारहीन, वे संसार की निस्सारता को क्या समझेंगे !)
संहनन
मोक्ष की योग्यता, क्षपक-श्रेणी, क्षायिक सम्यग्दर्शन, क्षायिक चारित्र उत्तम-संहनन से ही प्राप्त होता है। (श्री धवला जी की 17वीं पुस्तक – सतकर्म पञ्चिका – अनुवाद
स्वदर्श
दर्पण को ना*, दर्पण में देखो ना**, निर्दोष होने। आचार्य श्री विद्यासागर जी * बाह्य/ Frame/ दर्पण की Quality. ** दर्पण में अपने दोषों को
अवगाहना
अवगाहना = देह कितना स्थान/आकाश के प्रदेशों को घेर रही है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
मान
मान को प्राय: हम बो* देते हैं, फिर मान की फसल लहराने लगती है। साधुजन उसे बौना कर देते हैं तब वह न वर्तमान में
अनंतानुबंधी
अनंतानुबंधी कषाय उनके, जो उन वस्तुओं को पाने के भाव रखते हैं जो उनकी है नहीं, थी नहीं, कभी होगी भी नहीं, जिसकी है वह
पूजा / भक्त्ति
पूजा में भक्त भगवान को सुनाता है, भक्ति में भक्त भगवान की सुनता है। (राकेश जी)
ब्रम्हचर्य
सम्मूर्च्छन जीवों की हिंसा से ब्रम्हचर्य के द्वारा बहुत हद तक बच जाते हैं। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
आसन
ध्यान/ सामायिक में आसन बदलने में दोष नहीं, हाँ नम्बर ज़रूर कम हो जायेंगे। मुनि श्री सुधासागर जी
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