Month: December 2022
संलेखना
संलेखना में प्राय: मायाचारी आ जाती है। “मैं इतना बड़ा साधक हूँ, पूरी कमजोरियाँ बतायीं तो गुरु क्या सोचेंगे!” मुनि श्री सुधासागर जी
कर्म / आत्मा
कर्म सब काम कर रहे हैं, आत्मा तो जानती है, आत्मा करवाती है, कर्म करता है, क्योंकि शक्तियाँ (योग, मन, भाव) आत्मा में ही हैं।
करण
मिथ्यात्व के 3 टुकड़ों के बारे में मुख्य और गौण विवक्षा से 2 मत कह सकते हैं। 1. करण ने किये हैं। 2. काललब्धि से
स्वाध्याय
एक बार खोदने से हीरा नहीं मिलता, बार बार खोदने से मिलता है। ग्रंथ भी बार बार पढ़ने से तत्त्व समझ आता है। आचार्य श्री
उपादान / निमित्त
उपादान मूल्यवान तथा महत्त्वपूर्ण जैसे 4 करोड़ की कार। निमित्त मूल्यवान ना भी हो पर महत्त्वपूर्ण जैसे 4 रु. का Valve. मुनि श्री सुधासागर जी
संगति
अच्छे की संगति से और अच्छे बन सकते हैं, वैसे ही बुरे की संगति बुराईयों को और बढ़ा देती है। जैसे हीरा हीरे को तराश
काम / वेद
“काम” का ध्यान करने से “काम” बढ़ता है। “वेद” का ध्यान करने से धर्मध्यान बढ़ता है, “काम” शांत होता है, संस्कार भी कम होते हैं।
दर्शन
जीवन की शुरुवात दर्शन से ही होती है। प्रकार… 1. बाह्य…. जो चर्म इन्द्रियों से होता है। 2. अंतरंग… सम्यग्दर्शन*, जिसके लिये गुरु की आवश्यकता
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