Month: December 2022

पश्चाताप

“मैं पापी हूँ/ मायावी हूँ”, इसकी तो माला फेरनी चाहिये। आँखों से आँसू आ जायें/ पश्चाताप हो जायेगा (पाप धुल जायेंगे)। आचार्य श्री विद्यासागर जी

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मंदिर/तीर्थ सीढ़ियाँ चढ़कर ?

मंदिर/तीर्थ सीढ़ियाँ चढ़कर ही क्यों बनाये जाते हैं ? ताकि एक-एक सीढ़ी चढ़ते हुये महसूस करें… 1. बुराई/कमज़ोरियों से ऊपर उठ रहे हैं। 2. विशुद्धता

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विनय

प्राय: विनय को तप नहीं स्वीकारते, जबकि यह अभ्यंतर – तप में आता है। विनय के बिना सब व्यर्थ है। इससे असाध्य कार्य भी सिद्ध

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मन

आचार्य श्री विद्यासागर जी – “अपना मन, अपने विषय में क्यों न सोचता” कैसी बिडम्बना है ! जो मन अपने सबसे करीब है, उसके बारे

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भगवान के दिमाग

क्या भगवान के दिमाग होता है ? सिद्ध भगवान के शरीर ही नहीं तो दिमाग कैसे होगा ! (अरहंत अवस्था में दिमाग होगा, पर मन

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ध्यान / विज्ञान

स्वस्थ ज्ञान का नाम ध्यान है। अस्वस्थ ज्ञान का नाम विज्ञान। आचार्य श्री विद्यासागर जी

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जिनवाणी पर विश्वास

धर्म शुरु होगा… दया से, सम्यग्दर्शन… विश्वास से। तो भगवान की वाणी पर विश्वास करने से दया, धर्म तथा सम्यग्दर्शन सब आ जायेगा। मुनि श्री

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विनयवान

“विद्या ददाति विनयम्” यानि विद्या विनय लाती है। यदि मैं विनयवान नहीं हूँ तो इसका अर्थ हुआ कि मैं विद्यावान भी नहीं हूँ। (ब्र.नीलेश भैया)

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हुंडासर्पिणी

हुंडावसर्पिणी में हरेक हजार वर्ष के बाद धर्म का Rising Trend भी आता है, जैसा आजकल देखने में आ रहा है। निर्यापक मुनि श्री वीरसागर

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कर्मोदय

पुण्यकर्म के उदय से युवावस्था में मांसपेशियाँ आदि शक्ति/ सुंदरता देती हैं। वे ही पुण्य कम होने से वृद्धावस्था में दर्द/ बदसूरती। चिंतन

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मंगल आशीष

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