Month: April 2023
जैन दर्शन
जैन दर्शन में धर्म का विस्तार, स्वयं के विस्तार की कीमत पर नहीं। मुनि श्री सुधासागर जी
मन और विधान
मनोनुकूल आज्ञा दूँ तो कैसे दूँ विधि से बंधा। आचार्य श्री विद्यासागर जी
प्रमाद
बंध के कारणों में प्रमाद को अविरति के बाद में रखा है। सो यह प्रमाद संज्वलन कषाय के सद्भाव वाला लेना है। मुनि श्री प्रणम्यसागर
धर्म कैसे/ कितना करें ?
धर्म कैसे करें ? जैसे पाप करते हैं, लगातार। कितना करें ? Unlimited. निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी (चारित्रसार-चामुंडराय जी)
असत्य/उभय – मन/वचन योग
असत्य/उभय-मन/वचन योग का मूलकारण → ज्ञान पर आवरण (दर्शन तथा चारित्र मोहनीय इसलिये नहीं कहा क्योंकि ये संयमी के भी पाये जाते हैं – जीवकांड
ज्ञानी
कितनी भी मुसीबतें आयें, ज्ञानी कभी विचलित नहीं होते। सूरज का ताप कितना भी प्रचंड हो समुद्र कभी सूखता नहीं/ कम भी नहीं होता। (हितेष
णमोकार मंत्र
णमोकार मंत्र में पहले नमस्कार (णमो) फिर परमेष्ठी को ढूँढ़ा। यह नहीं कि सामने परमेष्ठी आये तब उन्हें नमस्कार किया। मुनि श्री सुधासागर जी
सुख / दु:ख
हमें दु:ख वे ही दे सकते हैं जिनसे हमने सुख की चाहत की हो। (अनुपम चौधरी)
Heart Attack
जब भाव-मन पर आघात होता है तब उसका असर द्रव्य-मन पर भी हो जाता है, यही Heart Attack है| मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
डर
डर के कारण – 1. भयानक दृश्य आदि देखने से जैसे Horror Film. 2. डरावनी चीजों के चिंतन से। 3. शरीर/ मानसिक दुर्बलताओं से। 4.
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