Month: April 2023
सम्यग्दर्शन का निमित्त
1. स्थावर जीवों की संख्या → लोक प्रमाणादि में गुणा करके महाराशि बना कर उसमें से एक कम करते हैं। 2. सबसे ज्यादा वायुकायिक जीव,
प्रभु भक्ति और मौत
जब मौत सबको आनी ही है तो प्रभु भक्ति का लाभ ? मौत रूपी बिल्ली के जबड़े में चूहे भी आते हैं जो तड़प-तड़प कर
कार्मण/नोकर्म द्रव्य
कार्मण द्रव्य बंधने के बाद एक आवली + एक समय तक स्थिर रहता है (इस काल में परिवर्तित नहीं कर सकते)। इसे कहते हैं →
स्नातक
“स्नात” यानि नहाना। स्नातक “स्नात” शब्द से बना है। इसीलिये भगवान (अरहंत) को स्नातक कहते हैं, जिन्होंने कर्मों (आत्मा का घात करने वाले) को धो
सत्य-योग
सत्य-मन = सत्य-भावरूप मन। सत्य-भाव होगा सत्य-पदार्थ को जानने से, उसके चिंतन से। जब सत्य-मन होगा, उसी से सत्य-योग होगा। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकांड–गाथा
व्यक्तित्व
3 प्रकार के व्यक्तित्व – 1. भगवान दौड़ायेगा तो दौडुंगा, जो फल देगा खा लूंगा – भाग्यवादी/एकांती। 2. मैं दौडुंगा, जीतुंगा भी – पुरुषार्थवादी/ एकांती।
भावकर्म
भावकर्म = रागद्वेष आदि। “आदि” में योग भी लेना क्योंकि योग भी रागद्वेष की तरह कर्मबंध में कारण है। आचार्य श्री विद्यासागर जी
नियम
आवश्यकताओं की तरह, नियम भी 3 प्रकार के…. (1) आवश्यक…. Minimum, इतने तो होने ही चाहिये। किसी भी हालात में छोड़ना नहीं। (2) आरामदायक…. आराम
योग
योग भीतरी वस्तु है पर होता है बाह्य निमित्तों से। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
Ego
Ego से झंडा-डंडा, शास्त्र-शस्त्र, बांसुरी-बांस, निर्जरा (कर्म काटना/समाप्त होना) से निकाचित/निद्यत्ति (कर्मों की तीव्र/घातक प्रकृतियाँ) कर्म बन जाते हैं। निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
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